फातेह-ए यरूशलम सुल्तान सलाउद्दीन अय्यूबी -
सुल्तान सला अल दीन अय्यूबी कौन थे?
तआरुफ़ -:
अस्सलामु अलैकुम मैं आप की मेज़बान साराह सदफ़ और आज का हमारा मौज़ू सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की हयात पर मब्नी है.
सुल्तान सला अल दीन का तआरुफ़ -:
अन नासिर सुल्तान सलाह अल दीन यूसुफ़ इब्न अय्यूब, जिन्हे नामे सलाहुद्दीन अय्यूबी से बेहतर जाना जाता है, की पैदाइश बाज़ मुअर्रिख़ीन साल 1137 ईस्वी में और दीगर मुअर्रिख़ीन साल 1138 ईस्वी में इराक के शहर तिकरित में बताते हैं. आप का ताल्लुक हज़रत नूह की औलाद में एक शख्स कुर्द की औलाद से था.
दौर-ए हुकूमत-:
आप साल 1174 ईस्वी से 4 मार्च 1193 इस्वी साल तक मिस्र और मुल्के शाम के सुल्तान रहे, एक वक़्त था की जब आप मिस्र और शाम के अज़ीम सुल्तान, हज़रत नूर अल दीन जंगी के सिपाह सालार थे, लेकिन सुल्तान नूर अल दीन जंगी और उनके जा-नशीनों की वफात के बाद आपने मिस्र और शाम की हुकूमत संभाली.
सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने साल 1187 में जब यरूशलम फतह किया तो इंग्लेंड, फ्रांस और अलमानिया (जर्मनी) के हुक्मरानों ने अपने बहुत बड़े लश्कर के साथ सुल्तान पर चढ़ाई कर दी, लेकिन सुल्तान के अज़ीम मर्द-ए मुजाहिदीन ने उस लश्कर-ए-कुफ्फार को खौफनाक शिकस्त दी.
निडर, बहादुर और बेबाक होने के साथ-साथ आप इंसाफ पसन्द और रहम दिली के मालिक थे, यही वजह है कि यूरोप के मुअर्रिख़ीन भी उनकी अज़मत की तारीफ़ और इज़्ज़त किया करते हैं, एक बार जब इंग्लैंड के हुक्मरान रिचर्ड ने अकरा के किले पर कब्ज़ा कर लिया था, तो मुसलामानों ने बाहर से उस किले के अतराफ़ का मुहासरा कर लिया था, उसी वक़्त बादशाह ने दिल का दौरा महसूस किया और वो बीमार पड़ गया था,
उसके इलाज के लिए कोई क़ाबिल हक़ीम नहीं मिला, तब हमारे अज़ीम सुल्तान ने अपने ज़ाती हक़ीम को बादशाह के पास भेजकर उसका इलाज करवाया.
हत्ता कि इस्लामी मुअर्रिख़ीन तो ये तक कह देते हैं कि सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के बाद ऐसा कोई अज़ीम जंगजू पैदा ही नहीं हुआ. सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपनी, हैबत, अज़मत, जलालत, बहादुरी, बेबाकी, बेखौफी से यरूशलम पर काबिज़ होने के लिए आये यूरोपी सलीबियों को सफ-ए हस्ती से मिटा दिया. सलीबियों को मुसलसल शिकस्त देने के बावजूद अहले यूरोप सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी को निगाहे इज़्ज़त से देखते हैं.
सुल्तान सलाउद्दीन की अज़मत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि फिलिस्तीन में बच्चे उनकी अज़मत की दास्तान सुनते हुए कहा करते थे की, "नाह नू उल मुस्लिमीन, कुल्लु नस सलाह अल दीन", यानी हम सब मुस्लिमीन के बेटे हैं और हममे सब सलाह अल दीन है.
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